Film Review #MAHARAJ by Nivedita Singh
LUCKNOW : ‘भगवान हमारे भीतर है, उस तक पहुंचने के लिए हमें किसी बाबा, महाराज या जेजे की ज़रूरत नहीं’ यह बात है तो एकदम सही पर दुर्भाग्य से भक्त लोग भक्ति और अंधभक्ति के बीच कई बार भेद ही नहीं कर पाते और इसी बात का फ़ायदा उठाकर धर्म के ठेकेदार मासूम लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं। ईश्वर की उपासना के बहाने ख़ुद को ही ईश्वर समझने लग जाते हैं। फ़िल्म इसी बात का विरोध करती है और जोर देती है कि धर्म को मानते हुए भी हमें सोचना नहीं छोड़ देना चाहिए। गलत और सही की कसौटी पर कसे बिना किसी बाबा या महाराज की बात पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं कर लेना चाहिए।
फ़िल्म का ही एक डायलॉग है सवाल न पूछे वो भक्त अधूरा है और जो ज़वाब न दे सके वो धर्म अधूरा है।
गंभीर और सोशल मैसेज वाली फ़िल्म
महाराज ज़ुनैद खान की डेब्यू फ़िल्म है पर इस तरह की गंभीर और सोशल मैसेज वाली फ़िल्म चुनने के लिए उनकी तारीफ़ की जानी चाहिए। फ़िल्म को देखते हुए एक बार भी जेहन में यह ख्याल नहीं आता कि वह आमिर ख़ान के बेटे हैं। उन्होंने ख़ुद को करसन दास मुलजी के चरित्र में ऐसा उतारा है कि हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ करसन दास ही दिखते हैं। ऐसा बहुत कम होता है कि कोई अभिनेता पहली फ़िल्म से ही अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के दिल पर गहरी छाप छोड़ जाए और ज़ुनैद इसमें पूरी तरह सफल होते दिखाई देते हैं। एकदम फ्रेश चेहरा, चहेरे पर मासूमियत और बढ़िया अभिनय बस कोर्ट में लम्बे मोनोलॉग के दौरान थोड़ा थियेटर की झलक दिखाई पड़ती है पर उसे नजरंदाज किया जा सकता है।
जे जे चरण सेवा के नाम पर किशोर लड़कियों और महिलाओं का शोषण
फ़िल्म की कहानी लेखक सौरभ शाह की क़िताब ‘महाराज’ पर आधारित है जिसमें एक तरफ़ है 18वीं सदी के नौजवान लेखक, पत्रकार और समाज सुधारक करसन दास मुलजी (जुनैद ख़ान) तो दूसरी तरफ़ हैं धर्म गुरु जे जे (जयदीप अहलावत)। जे जे चरण सेवा के नाम पर किशोर लड़कियों और महिलाओं का शोषण करता है और इसे ईश्वर की भक्ति का नाम देता है। जेजे ने धर्म का ऐसा मायाजाल फ़ैला रखा है कि कौन कहे शोषण का विरोध करने को उल्टा घरवाले अपने घर की बेटियों, बहुओं के शोषण पर लापसी बनवाते हैं और खुशी खुशी उन्हें जेजे की हवस की आग में जलने के लिए भेजते हैं। करसन दास जो बचपन से ही समाज की कुरीतियों को लेकर अनेक सवाल पूछता रहता है, जो प्रदा प्रथा का विरोधी, विधवा विवाह का समर्थक है जब उसे यह बात पता चलती है तो इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाना शुरू करता है। अपनी प्रेमिका किशोरी (शालिनी पांडे) को चरण सेवा देते हुए देखकर वह तड़प उठता है। मना करने पर जब वह नहीं मानती तो उससे सगाई तोड़ देता है। किशोरी जेजे के पास हवेली में वापस लौटती है और जेजे उसे उसकी ख़ास बनाकर रखने की बात करता है। मासूम किशोरी जेजे की बात पर भरोसा कर लेती है लेकिन तभी हवेली में उसकी बहन आती है और वह छुपकर देखती है तो वही बातें जेजे उसकी बहन से भी करता है जो कुछ देर पहले उससे कर रहा था। वह जेजे की चाल समझ जाती है और अपनी बहन को वहां से भगा देती है, खुद भी टूटे हुए विश्वास के साथ हवेली से निकल जाती है पर दोबारा करसन दास के पास वापस नहीं लौट पाती। आगे कहानी क्या मोड़ लेती है इसके लिए फिल्म देखनी पड़ेगी।
करसन दास जेजे के खिलाफ़ लिखने के साथ ही सत्य प्रकाश अख़बार का प्रकाशन भी शुरू करता है। जेजे उसके खिलाफ़ मानहानि और पचास हजार का दावा ठोककर उसे बॉम्बे हाई कोर्ट में घसीट लेता है। जेजे और जेजे के करोड़ों भक्त के सामने कैसे करसन दास अपनी आवाज़ को ज़िंदा रख पाता है, कैसे कोर्ट केस से बरी हो पाता है यह सब जानने के लिए दर्शकों को थोड़ा वक्त निकालना पड़ेगा। यहां एक बात उल्लेखनीय है कि इसी केस के आधार पर 1862 का महाराज लिबेल केस भारतीय कानून और इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
जयदीप अहलावत एक बेहतरीन अभिनेता हैं। थ्री ऑफ अस, जानेजाँ के बाद इस फिल्म में भी उन्होंने अपने अभिनय को एक विस्तार दिया है। उनके हिस्से डायलॉग कम हैं लेकिन अपने भाव भंगिमा से उन्होंने वह कर दिखाया है जो लोग डायलॉग बोलकर भी नहीं कर पाते। शालिनी पांडे, शरवनी वाघ दोनों ने अपनी भूमिका को निभाने का बढ़िया प्रयास किया है। जुनैद ख़ान को देखकर यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में फिल्म इंडस्ट्री को एक बहुत ही उम्दा कलाकार मिलने वाला है। फिल्म की कहानी लिखी है विपुल मेहता और स्नेहा देसाई ने। सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा फ़िल्म के निर्देशक हैं और निर्माता हैं आदित्य चोपड़ा। फ़िल्म का गीत संगीत औसत है पर अगर अच्छी फिल्में देखने का शौक है तो एक बार बिल्कुल देखी जा सकती है।
निवेदिता सिंह