शोर-शराबा और वायलेंस से बचते हुए कुछ अलग देखना चाहते हैं तो नेटफ्लिक्स पर सिंगल पापा एक अच्छा ऑप्शन है।
सिंगल पापा की कहानी है गौरव गहलोत बोले तो GG की जो पिता बनना चाहता है पर उसकी पत्नी अभी मां बनना नहीं चाहती ऐसे में उस पर बच्चा एडॉप्ट करने की धुन सवार होती है और फ़िर उसके लिए GG को क्या क्या तिकड़म करना पड़ता है बस इसी को मज़ेदार ढंग से कॉमेडी का तड़का लगाकर परोसा गया है। असल ज़िंदगी में एक सिंगल मेल के लिए बच्चा एडॉप्ट करने पर लम्बी बातचीत या बहस हो सकती है पर फ़िल्म में एक पॉजिटिव पर्सपेक्टिव दिया गया है।
यह तो सच है कि जब बात ज़िम्मेदारी की आती है तो पुरुषों को लेकर हमारा मन थोड़ा सशंकित तो रहता है। हमारी कंडीशनिंग भी ऐसी है कि हमें लगता है घर परिवार और बच्चे की ज़िम्मेदार स्त्रियां ही बेहतर तरीके से निभा सकती हैं पर हर बार यही सच हो ऐसा ज़रूरी नहीं, अपवाद भी होते ही हैं समाज में। मुझे याद है एक बार एक नवजात बेटी को पहली बार उसके पिता को देते वक्त उसकी दादी ने बोला था अरे वो कैसे संभालेगा इतनी छोटी बच्ची को, उसने इतने छोटे बच्चे कहां उठाए हैं🙂 यह कोई एक नहीं लगभग हर घर की कहानी है जहां लड़कों की मां को लगता है कि उसका बेटा पिता बन गया है लेकिन है वो अभी बच्चा ही जो अपने बच्चे को ठीक से गोद में उठा भी नहीं सकता है जबकि नई बनी मांओं से पहले दिन से ही परफेक्ट होने की उम्मीद की जाती है।
दूसरा पक्ष बच्चों की सुरक्षा का भी है। मैंने टीचिंग के दौरान यह अनुभव किया था कि क्यों प्री नर्सरी और प्राइमरी क्लास में सिर्फ़ लड़कियों और स्त्रियों को ही टीचर के रूप में रखा जाता है पुरुषों को नहीं..देखा जाए तो यह बड़ी बात है पर पितृसत्ता ने हमें बड़ी बख़ूबी से ऐसी बातों को इग्नोर करना सिखा दिया है।
सीरीज में अडॉप्शन से पहले बहुत सारे सवाल हैं जो दिमाग़ में घूमते हैं..
एक पुरुष (गैर-जिम्मेदार) अच्छा पिता बन सकता है क्या? क्या हमारा समाज सिंगल पुरुष को पिता के रूप में देखता है? क्या पिता भी माँ जितना हो सक्षम होता है एक बच्चे को पालने में? क्यों घर में कम से कम एक स्त्री का होना ज़रूरी है अडॉप्शन के लिए ..इन्हीं सारे सवालों का जवाब बनकर उभरते और निखरते हैं जीजी। काफ़ी भावनात्मक किरदार निभाया है कुणाल ने। लास्ट सीन में जब नेहा धूपिया बच्चे को उससे दूर ले जा रही होती है मेरा सात साल का बेटा फूट फूटकर रोने लगता है। कहीं कहीं सीरीज थोड़ी खिंची हुई दिखती है पर कुछ अच्छा देखने के लिए उतना बर्दाश्त किया जा सकता है। प्राजक्ता कोली बुआ, बहन और फिआंसी के क़िरदार में उलझी हुई प्यारी लगी है। नेहा धूपिया, मनोज पाहवा, आयशा राजा मिश्रा सभी ने अच्छा काम किया है।
by Nivedita Singh





