November 21, 2024 3:31 pm

तीन दिन की छुट्टियों का हासिल साज-बाज़……

LUCKNOW: किताब काफ़ी दिनों पहले ऑर्डर कर दी थी पर deliver 23 को हुई..23, 24, 25 छुट्टी थी तो समय भी मिल गया (या कहिये निकाल लिया) और क़िताब पढ़कर ख़त्म की..बहुत समय बाद किसी किताब को पूरा पढ़ने का सुख मिला है वरना कुछ बरस से किताबें साइड टेबल पर पढ़ी जाने के इन्तज़ार में पड़ी रहती हैं..
साज -बाज़ Priyanka Om का पहला उपन्यास है ..इससे पहले उनके तीन कहानी संग्रह आ चुके है. .प्रियंका ने बीते वर्षों में अपनी लेखनी पर खूब मेहनत की है. .कहन का अंदाज़ दिलचस्प हुआ है और बेबाकी क़ायम है जो मेरे लिए सुंदर बात है..
साज-बाज़ दो प्रेमिल लोगों देविका और शिवेन की कहानी है ..प्रियंका भूमिका में लिखती हैं कि यह कहानी ख़ुद उनकी और उनके पति ओम और उन सबकी है जिन्होंने अहं से ऊपर प्रेम को चुना शायद इस वज़ह से उपन्यास पढ़ते हुए मेरे मन में प्रियंका ही चलती रही..लग रहा था प्रियंका ख़ुद अपनी कहानी अपनी ज़ुबाँ से सुनाती चल रही है…
उपन्यास में कोई बड़ी घटना, कुछ अंदर तक झकझोर देने वाला नहीं है बस प्यार की एक मीठी खुमारी साथ बनी रहती है..एक दूसरे से बेहद ज़ुदा होते हुए भी दो लोग साथ रह सकते हैं यह प्रेम का सकारात्मक दृष्टिकोण है..लड़ाई-झगड़े, बहस, जुदाई के बाबजूद भी कभी यह ख़्याल नहीं आता कि दोनों किसी मोड़ पर अलग हो जाएंगे..मुझे लगता है भूमिका में ही यह स्पष्ट नहीं करना चाहिए था कि यह कहानी ख़ुद लेखक की है इससे शायद आगे क्या होगा यह जिज्ञासा बनी रहती..अगर बताना ही था तो कहानी के अंत तक आते आते यह राज खोलना था. .
इस उपन्यास के बहाने लेखिका ने स्त्री, पुरुष, प्रेम पर कुछ बढ़िया उद्धरण प्रस्तुत किया है जो काफ़ी सटीक लगता है और दिमाग़ को सोचने पर मजबूर करता है. ..देखिए ज़रा
“स्त्री पुरुष के प्रेम पर अधिकार चाहती है, पुरुष उसके अस्तित्व पर ”
:तुम्हारे पापा की पसंद अब मेरी पसंद है”…यानि स्त्रियों की अपनी कोई पसंद नहीं यह समाज में स्त्रियों की स्थिति बयान करती है. ..
“हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां फेयर होना ही लवली है”. .यह कटाक्ष है गोरे होने की सनक पर, लेकिन कहने का अंदाज कितना चुटीला है. ..

“विवाह भावना का आवेग नहीं, एक दूसरे के साथ सामंजस्य का निर्वहन है”
“प्रेम में रंगरेज हो जाओ” अहा. ..लाइन भा गयी. .

“एक प्रेम ही तमाम दोषों का निवारण है “..ऐसा ही होना चाहिए पर ऐसा होता है क्या यह आप सब पर छोड़ती हूँ

कुल मिलाकर अगर कुछ रूमानी पढ़ने का शौक है तो पढ़ डालिए इस साज-बाज़ को..

UP Ka Agenda
Author: UP Ka Agenda

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