June 30, 2025 8:08 pm

देश में जलवायु परिवर्तन से धान और गेहूं के साथ मक्के जैसी फसलें भी प्रभावित

impact-on-agriculture-due-to-climate-change-crops
Google

नई दिल्ली :। भारत में शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां चावल न खाया जाता हो। किसी अन्य खाद्यान्न की अपेक्षा चावल की खपत विश्व में सर्वाधिक है । भारतीय संस्कृति में भी चावल को महत्वपूर्ण स्थान हासिल है। पूजा के दौरान भगवान को कच्चे चावल अर्पित किए जाते हैं।

भक्तों पर भी भगवान के आशीर्वाद के रूप में कच्चे चावल के दानों की बौछार की जाती है। विवाह संस्कार के दौरान भी नवदंपती पर चावल छिड़ककर उसे समृद्धि का आशीर्वाद दिया जाता है। लेकिन हमारे जीवन का सबसे अभिन्न खाद्यान्न जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ता जा रहा है।

खाद्य सुरक्षा में धान (चावल) की हिस्सेदारी सबसे अधिक होने से कृषि वैज्ञानिक इस चुनौती से लगातार जूझ रहे हैं। हाल ही मैकेंजी की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत धान की पैदावार के लिए उपयुक्त करीब 450,000 वर्ग किलोमीटर भूमि खो सकता है।

जलवायु परिवर्तन का सम्भावित प्रभाव

  1. सन् 2100 तक फसलों की उत्पादकता में 10-40 प्रतिशत की कमी आएगी।
  2. रबी की फसलों को ज्यादा नुकसान होगा। प्रत्येक 1 से.ग्रे. तापमान बढ़ने पर 4-5 करोड़ टन अनाज उत्पादन में कमी आएगी।
  3. पाले के कारण होने वाले नुकसान में कमी आएगी जिससे आलू, मटर और सरसों का कम नुकसान होगा।
  4. सूखा और बाढ़ में बढ़ोत्तरी होने की वजह से फसलों के उत्पादन में अनिश्चितता की स्थिति होगी।
  5. फसलों के बोये जाने का क्षेत्र भी बदलेगा, कुछ नये स्थानों पर उत्पादन किया जाएगा।
  6. खाद्य व्यापार में पूरे विश्व में असन्तुलन बना रहेगा।
  7. पशुओं के लिए पानी, पशुशाला और ऊर्जा सम्बन्धी जरूरतें बढ़ेंगी विशेषकर दुग्ध उत्पादन हेतु।
  8. समुद्रों व नदियों के पानी का तापमान बढ़ने के कारण मछलियों व जलीय जन्तुओं की प्रजनन क्षमता व उपलब्धता में कमी आएगी।
  9. सूक्ष्म जीवाणुओं और कीटों पर प्रभाव पड़ेगा। कीटों की संख्या में वृ़द्धि होगी तो सूक्ष्म जीवाणु नष्ट होंगे।
  10. वर्षा आधारित क्षेत्रों की फसलों को अधिक नुकसान होगा क्योंकि सिंचाई हेतु पानी की उपलब्धता भी कम होती जाएगी।

फसलों पर प्रभाव

कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के जो सम्भावित प्रभाव दिखने वाले हैं वे मुख्य रूप से दो प्रकार के हो सकते हैं— पहला क्षेत्र आधारित तथा दूसरा फसल आधारित। अर्थात विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न फसलों पर अथवा एक ही क्षेत्र की प्रत्येक फसल पर अलग-अलग प्रभाव पड़ सकता है। गेहूँ और धान हमारे देश की प्रमुख खाद्य फसलें हैं। इनके उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पड़ रहा है।

गेहूँ उत्पादन

  1. अध्ययनों में पाया गया है कि यदि तापमान 2 से.ग्रे. के करीब बढ़ता है तो अधिकांश स्थानों पर गेहूँ की उत्पादकता में कमी आएगी। जहाँ उत्पादकता ज्यादा है (उत्तरी भारत में) वहाँ कम प्रभाव दिखेगा, जहाँ कम उत्पादकता है वहाँ ज्यादा प्रभाव दिखेगा।
  2. प्रत्येक 1 से.ग्रे. तापमान बढ़ने पर गेहूँ का उत्पादन 4-5 करोड़ टन कम होता जाएगा। अगर किसान इसके बुवाई का समय सही कर लें तो उत्पादन की गिरावट 1-2 टन कम हो सकती है।

धान का उत्पादन

  1. हमारे देश के कुल फसल उत्पादन में 42.5 प्रतिशत हिस्सा धान की खेती का है।
  2. तापमान वृद्धि के साथ-साथ धान के उत्पादन में गिरावट आने लगेगी।
  3. अनुमान है कि 2 से.ग्रे. तापमान वृद्धि से धान का उत्पादन 0.75 टन प्रति हेक्टेयर कम हो जाएगा।
  4. देश का पूर्वी हिस्सा धान उत्पादन में ज्यादा प्रभावित होगा। अनाज की मात्रा में कमी आ जाएगी।
  5. धान वर्षा आधारित फसल है इसलिए जलवायु परिवर्तन के साथ बाढ़ और सूखे की स्थितियाँ बढ़ने पर इस फसल का उत्पादन गेहूँ की अपेक्षा ज्यादा प्रभावित होगा।
UP Ka Agenda
Author: UP Ka Agenda

What does "money" mean to you?
  • Add your answer